भारत-जापान रणनीतिक साझेदारी: एक नया आयाम
भारत और जापान के बीच विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी (Special Strategic and Global Partnership) आज एक नए आयाम पर पहुँच चुकी है। दोनों देश न केवल ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं, बल्कि आधुनिक समय में आर्थिक, तकनीकी, रक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी एक-दूसरे के मज़बूत सहयोगी बन चुके हैं।
ऐतिहासिक संबंध
भारत और जापान के बीच संबंध कोई नए नहीं हैं। बौद्ध धर्म ने दोनों देशों को एक गहरे सांस्कृतिक धागे में बाँधा है। स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा जापान को हाथी भेंट करना इन संबंधों का प्रतीक रहा। वर्ष 1952 में शांति संधि पर हस्ताक्षर कर भारत ने जापान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए।
रणनीतिक साझेदारी का विकास
वर्ष 2000: वैश्विक साझेदारी
वर्ष 2006: रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी
वर्ष 2014: विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी
वर्ष 2015: ‘भारत-जापान विज़न 2025’
इन समझौतों ने दोनों देशों के रिश्तों को लगातार मज़बूत किया है।
प्रमुख क्षेत्र
1. रक्षा एवं सुरक्षा : संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग और सूचना साझा करने से सुरक्षा सहयोग मज़बूत हुआ है।
2. प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष : AI, रोबोटिक्स, सेमीकंडक्टर और अंतरिक्ष अनुसंधान में दोनों देशों की भागीदारी बढ़ रही है।
3. अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी : हाई-स्पीड रेल, औद्योगिक गलियारे और मेट्रो परियोजनाओं में जापान का बड़ा योगदान है।
4. हरित ऊर्जा और जलवायु सहयोग : क्लीन हाइड्रोजन, अमोनिया और सस्टेनेबल एनर्जी पर समझौते।
5. लोगों के बीच आदान-प्रदान : शिक्षा, भाषा, पर्यटन और कौशल आधारित सहयोग।
चुनौतियाँ
व्यापार असंतुलन (भारत का निर्यात कम, जापान का ज़्यादा)
रणनीतिक दृष्टिकोण में अंतर (भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बनाम जापान का अमेरिका गठबंधन)
विकास परियोजनाओं में देरी (जैसे मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल)
आगे की राह
* CEPA सुधार और व्यापार संतुलन पर ध्यान
* अर्धचालक, खनिज और FDI में जापान का निवेश बढ़ाना
* क्वाड और इंडो-पैसिफिक विज़न पर सहयोग
* शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विस्तार
निष्कर्ष
भारत और जापान की साझेदारी केवल आर्थिक या राजनीतिक नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सांस्कृतिक और रणनीतिक समझ का परिणाम है। चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन अवसर कहीं अधिक हैं। यह साझेदारी न केवल दोनों देशों बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये स्थिरता और विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
लेखक: रवि कुमार माँझी
(अबु धाबी, संयुक्त अरब अमीरात)
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